परिचय


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शुक्रवार, 7 मई 2021

समान्तर अनुक्रम और समान्तर श्रेणी

गणित में किसी एक विशेष समस्या के हल हेतु प्रयुक्त धारणा अत्यधिक व्यापक समस्या को हल करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं. प्रस्तुत लेख इस बिंदु की स्पष्टता से व्याख्या करता है. इस लेख में हम देखेंगे कि कैसे एक समान्तर अनुक्रम से संबंधित समस्या को हल करने में प्रयुक्त धारणा व्यापक समान्तर अनुक्रम से संबंधित व्यापक समस्या के हल में उपयोगी सिद्ध होती है.

सोमवार, 3 जुलाई 2017

गणित में प्रेक्षण उपपत्ति (प्रमाण) क्यों नहीं हो सकती ?

गणित में प्रेक्षण के ही आधार पर किसी कथन को सत्य नहीं माना जा सकता है. प्रेक्षण सीमित होता है, अतः यह किसी कथन को सार्वत्रिक रूप से सत्य प्रमाणित करने में सक्षम नहीं भी हो सकता है. इसे हम एक उदाहरण के द्वारा समझाएँगे. 

एक बहुपद $f(n) = n^2 + n + 41$ पर विचार कीजिए. यदि आप $n$ के $0$ से लेकर $39$ तक के मानों के लिए $f(n)$ का मान परिकलित करें, तो आप पाएँगे कि ये सभी मान अभाज्य संख्याएँ हैं (नीचे के सारणी में देखें).

तो क्या इन प्रेक्षणों के आधार पर कहा जा सकता है $n$ के किसी भी ऋणेतर मान के लिए $f(n)$ का मान अभाज्य होता है. वास्तव में, ऐसा कहना असत्य होगा. इस कथन को ऑयलर (Euler) ने $1772$ ईसवीं में असत्य प्रमाणित किया था. यदि आप उपरोक्त बहुपद का मान $n = 40$ के लिए परिकलित करें, तो आप पाएँगे कि
\[f(40) = 40^2 + 40 + 41 = 40(40 + 1) + 41 = 40(41) + 41= 41(40 + 1) = 41^2.\]
इस प्रकार हम देखते हैं कि यह मान अभाज्य नहीं है. 

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रविवार, 2 जुलाई 2017

अद्वितीय गुणनखंडन: पुनरावलोकन

एक से बड़े किसी भी धन पूर्णांक (positive integers) को अभाज्य संख्याओं (prime numbers) के गुणनफल के रूप में लिखने की प्रक्रिया से हमलोग प्रारंभिक कक्षा में ही परिचित हो जाते हैं. अभाज्य संख्याओं के गुणनफल के रूप में यह निरूपण उस संख्या का अभाज्य गुणनखंडन (prime factorization) कहलाता है. यह निरूपण अद्वितीय (unique) भी होता है, यदि अभाज्य गुणनखंडों के क्रम को महत्त्व न दिया जाए. इस तथ्य को अंकगणित का मूलभूत प्रमेय  (Fundamental Theorem of Arithmetic) के नाम से जाना जाता है. इस प्रमेय का स्पष्ट कथन नीचे दिया गया है. इस प्रमेय की उपपत्ति और इससे संबंधित विस्तृत जानकारी के लिए अंकगणित का मूलभूत प्रमेय नामक लेख पढ़ें.





प्रमेय (अंकगणित का मूलभूत प्रमेय). प्रत्येक धन पूर्णांक $n > 1$ को अभाज्य संख्याओं के गुणनफल के रूप में निम्न प्रकार व्यक्त किया जा सकता है:
\[n = p_1^{e_1} \cdots p_k^{e_k},\]
जहाँ $p_1, \ldots, p_k$ भिन्न - भिन्न अभाज्य संख्याएँ हैं और $e_1, \ldots, e_k$ धन पूर्णांक हैं. यदि इस निरूपण में अभाज्य गुणनखंडों के क्रम को महत्त्व न दिया जाये तो यह निरूपण अद्वितीय होता है.
 

उदाहरण के लिए, $30$ के दो अभाज्य गुणनखंडन $30 =  2\cdot3\cdot5$ और $30 = 3 \cdot 2 \cdot 5$ समान कहे जाएँगे. $30$ का कोई अन्य अभाज्य गुणनखंडन अभाज्य गुणनखंडन संभव नहीं है. अब एक स्वाभाविक प्रश्न उठता है - क्या ऐसा कोई उदाहरण है, जहाँ अभाज्य गुणनखंडन अद्वितीय नहीं हो, अर्थात किसी संख्या के एक से अधिक अभाज्य गुणनखंडन हों ? मैंने भी पहली बार जब इस प्रमेय को पढ़ा था, तो यह प्रश्न मन में उठा था. परन्तु मैं उत्तर नहीं खोज सका था. इसका उत्तर स्नातक की कक्षा में अमूर्त बीजगणित की पुस्तक में मिला. परन्तु उस उदाहरण को समझने के लिए, हमें वलय, गुणनखंडनीय प्रांत, अखंडनीय अवयव, अभाज्य अवयव इत्यादि की व्यापक परिभाषा की जानकारी आवश्यक है. परन्तु हम एक ऐसे उदाहरण पर चर्चा करना चाहते हैं, जिसे समझने के लिए इन सब चीजों को जानना आवश्यक नहीं है और यह आसान भी है. (दसवीं कक्षा तक के गणित जानने वाले छात्र भी इसे समझ सकेंगे.) इस उदाहरण से मेरा सामना कुछ दिन पहले फ्रेज़र जारविस (Frazer Jarvis) द्वारा लिखित बीजगणितीय संख्या सिद्धांत (Algebraic Number Theory) की पुस्तक [1] पढ़ने के क्रम में हुई. यह उदाहरण इस पुस्तक के अध्याय 4 में पृष्ठ संख्या  65 पर उदाहरण 4.1 में दिया गया है. यह पुस्तक स्नातक-स्तरीय पाठ्यक्रम के लिए है. यहाँ पर हम इस उदाहरण को अत्यंत विस्तार से समझाएँगे.

सोमवार, 19 जून 2017

शून्य से विभाजन की समस्या


  
यह लेख मूल अंग्रेजी लेख Zero in Division: quite a tricky affair ;) की अनूदित सह संशोधित व संवर्धित प्रस्तुति है.
  मूल लेखिका: प्रिया अस्थाना
  अनुवादक: राज कुमार मिस्त्री
 


बच्चे प्रारंभिक कक्षाओं में ही विभाजन (division) अर्थात भाग देने की प्रक्रिया से परिचित हो जाते हैं. उन्हें यह प्रक्रिया अत्यंत आसान लगती है. परन्तु जब शून्य से भाग देने की समस्या आती है, तो वे उत्तरहीन हो जाते हैं. यह समस्या और भी कठिन हो जाती है, जब शून्य में शून्य से भाग देने का प्रश्न उठता है.

यहाँ पर हम इन्हीं समस्याओं पर विस्तार चर्चा करेंगे और इनका हल प्रस्तुत करेंगे. यह चर्चा प्राथमिक और माध्यमिक कक्षा के छात्रों को ध्यान में रखकर प्रस्तुत की गई है. हम निम्नलिखित तीन समस्याओं पर चर्चा करेंगे:
  •  $\frac{0}{N}$ (किसी शून्येतर संख्या से शून्य का विभाजन)
  •  $\frac{N}{0}$ (किसी शून्येतर संख्या का शून्य से विभाजन)
  •  $\frac{0}{0}$ (शून्य से शून्य का विभाजन). 

शुक्रवार, 21 अप्रैल 2017

दो और दो पाँच !!!

बिंदु और शून्यम् एक ही कक्षा में पढ़ते थे. दोनों के बीच अद्भुत मित्रता थी और दोनों ही गणित समेत सभी विषयों में निपुण थे. कक्षा के सभी छात्र - छात्राएँ इनसे बहुत प्रेम करते थे. वे सभी आपस में गणित और अन्य विषयों पर चर्चा - परिचर्चा करते रहते थे. गणित के शिक्षक अनंत सर भी इन्हें बहुत प्यार करते थे. सभी छात्र एक दिन पूर्व ही अगले दिन कक्षा में पढ़ाए जाने वाले पाठ का अध्ययन करके आते थे और समझ में न आने वाली चीजें अनंत सर से पूछते थे. अपनी कक्षा के विद्यार्थियों की यह प्रवृति देखकर अनंत सर को बहुत ही प्रसन्नता होती थी.

कल बीजगणित की कक्षा में भिन्नात्मक संख्याओं के वर्गमूल से संबंधित पाठ पढ़ाए जाने वाले थे और आज रविवार था. बिंदु और शून्यम् उक्त पाठ को ध्यानपूर्वक पढ़ रहे थे और संकल्पनाओं पर चिंतन कर रहे थे. संरेख इधर से ही गुजर रहा था. वह उच्च कक्षा का छात्र था और इनकी प्रतिभा के विषय में बहुत - कुछ सुन चुका था.

बिंदु और शून्यम् ने एक साथ पूछा, "बहुत दिनों के बाद आपके दर्शन हुए ! कैसे हैं आप ?"
"हाँ, कुशल हूँ. तुमलोग कैसे हों ? और क्या पढ़ाई चल रही है ?" उन्होंने कहा.

शनिवार, 31 दिसंबर 2016

विभाज्यता - परीक्षण का व्यापक सिद्धांत (General Theory of Divisibility Tests)

विभाज्यता-नियम वे नियम हैं जिनके द्वारा मूल संख्या पर लम्बी भाग की प्रक्रिया किये बिना हम किसी एक संख्या से दूसरी संख्या के विभाज्यता का पता  कर सकते हैं. परंतु विभाज्यता से हमारा क्या तात्पर्य है ? हम कहते हैं कि कोई  पूर्णांक $b$ एक अन्य पूर्णांक $a$ से विभाज्य है (या पूर्णांक $a$ पूर्णांक $b$ को विभाजित करता है), यदि एक ऐसे पूर्णांक $c$ का अस्तित्व हो, जिससे कि $b = ac$ हो, और इस स्थिति में हम $a \mid b$ लिखते हैं और इसे "$a$ $~$ $b$ को विभाजित करता है" पढ़ते हैं. उदाहरण के लिए, $12$ अभाज्य संख्या $3$ से विभाज्य है, क्योंकि एक पूर्णांक $4$ का अस्तित्व है, जिससे कि $12 = 3 \times 4$. विभाज्यता से संबंधित कुछ नियमों से पाठक संभवतः परिचित होंगे - जैसे कोई धन पूर्णांक $2$ से विभाज्य होता है यदि और केवल यदि इसका इकाई अंक एक सम संख्या हो, और कोई धन पूर्णांक $3$ से विभाज्य होता है, यदि और केवल यदि इनके अंकों का योग $3$ से विभाज्य हों, इत्यादि. अलग - अलग धन पूर्णांक से विभाज्यता के अलग - अलग नियम हैं, जिन्हें याद रख पाना प्रायः कठिन होता है. परन्तु ये सभी नियम कुछ विभाज्यता के कुछ आधारभूत सिद्धांतों पर आधारित हैं, जिन्हें याद रखना और समझना आसान हैं. इन सिद्धांतों को समझ लेने के पश्चात आप किसी भी संख्या से विभाज्यता का नियम स्वयं खोज सकते हैं. प्रस्तुत लेख में हम विभाज्यता-नियमों का उल्लेख करने से पहले इन आधारभूत सिद्धांतों पर चर्चा करेंगे, उन्हें प्रमाणित करेंगे और फिर बताएँगे कि किस प्रकार इन सिद्धांतों का प्रयोग विभाज्यता नियमों के निर्धारण में किया जा सकता है.

गुरुवार, 22 दिसंबर 2016

रामानुजन – गाथा: चयनित पंक्तियाँ

रामानुजन – गाथा

 

महानतम भारतीय गणितज्ञ व संख्या -सिद्धांत शास्त्री श्रीनिवास रामानुजन की जयंती के उपलक्ष्य में सादर समर्पित !

[प्रस्तुत कविता-अंश स्वरचित "रामानुजन -गाथा" से उद्धृत हैं.] 




थे रामानुजन गणितज्ञ ऐसे, जिन्हें विश्व समादर देते थे।
जिनकी मोहिनी प्रतिभा के आगे सब , नतमस्तक हो जाते थे॥ १ ॥

अंक ही उनकी दुनिया , अंकों में खोए रहते थे।
अंक ही उनका ईश्वर, उन्हें ही वे पूजते थे॥ २ ॥

हमारी भारत माता ने , कितने रत्नों को जन्म दिया।
उन रत्नों ने ज्ञानदीप से , विश्व को प्रकाशमान किया॥ ३ ॥

ईश्वी सन अठारह सौ सतासी , बाईस दिसंबर आया था।
चिरस्मरणीय विश्व में सुन्दर , क्षण यह बनकर आया था॥ ४ ॥

गौरवपूर्ण दिवस यह , रामानुजन का अवतार हुआ।
गणित के इतिहास में , नयी प्रतिभा का आविर्भाव हुआ॥ ५ ॥
..........
पाँच वर्ष की उम्र में उसने , अपना विद्यारम्भ किया ।
अपनी प्रतिभा से शिक्षकों को ,चकित करना शुरू किया॥ १० ॥
....................
गणित में सर्वप्रथम आना, रामानुजन की अभिलाषा थी ।
अपर प्राइमरी कक्षा की , फिर से आई परीक्षा थी ॥ १८ ॥

बयालीस अंक पैंतालीस में से , अंकगणित में उन्होंने प्राप्त किया ।
शत प्रतिशत अंक प्राप्त न कर पाने का , भारी पश्चाताप हुआ ॥ १९ ॥

दुखकातर ह्रदय उनका , घंटों अश्रुपात किया।
गणित ही उनका जीवन , गणित से बड़ा ही प्रेम किया ॥ २० ॥
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प्रथम शोधपत्र था उनका, नवीन और अत्यंत दुरूह |
सामान्य पाठक के लिए वह, न समझा गया अनुकूल ||६८||
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विश्व को उनकी प्रतिभा का, अब जाकर आभास हुआ |
कई गणितज्ञों से उनका सार्थक पत्राचार हुआ ||८४||
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सन तेरह में जनवरी सोलह को हार्डी को प्रथम पत्र लिखा |
प्रमेयों से परिपूर्ण वह पत्र, इतिहास में विश्व – प्रसिद्द हुआ ||८८||
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प्रथमतः हार्डी ने उनके, शोधपत्र को समझा था |
उनकी अनोखी प्रतिभा को अपार अलौकिक माना था ||९८||
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ट्रिनिटी कॉलेज में प्रवेश पाकर कैम्ब्रिज वे चले गये |
अलौकिक प्रतिभा से सबको, विस्मित वे करने लगे ||११४||
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अठारह फरवरी सन अठारह, विश्व आज गौरवान्वित था |
रॉयल सोसायटी लंदन ने, अपना फैलो मनोनीत किया था ||१५२||
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मद्रास विश्विद्यालय ने भी, उनका समुचित सम्मान किया |
गणित प्राचार्य का पदविशेष, तत्क्षण उनके लिए सृजित किया ||१५८||
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भारत की प्रतिभा, भारत की काया, इंग्लैंड उनके प्रतिकूल था |
ठंडी जलवायु, गिरती सेहत, लौटना भारत श्रेयस्कर था ||१६१||


उस शोध – भूमि को छोड़ उन्होनें, भारत प्रस्थान किया |
वहां पर अब शोध न कर पाने का, उन्हें अत्यंत खेद हुआ||१६२||
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कैसे होते स्वस्थ? ईश्वर को यह मंजूर न था |
गणित – साधना को विराम देना, रामानुजन को मंजूर न था ||१७७||


अंत समय भी, मोक थीटा फंक्शन पर काम किया |
घनिष्ठ मित्र हार्डी को, उन परिणामों से सूचित किया ||१७८||
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विकट संकट में नहीं झुकने वाले, काल को वे पराजित कर न सके |
अपने अनगिनत प्रेमी जन को, वे रोने से न रोक सके ||१८३||


सन बीस में अप्रील छब्बीस को, वे ब्रह्माण्ड में समा गये |
अपनी स्मृति को वे जनमानस में छोड़ गये ||१८४||


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रामानुजन छाया-चित्र-स्रोत: By Konrad Jacobs (Oberwolfach Photo Collection, original location) [CC BY-SA 2.0 de (http://creativecommons.org/licenses/by-sa/2.0/de/deed.en)], via Wikimedia Commons 
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